छह साल से मेरी बेटी की आत्मा इंसाफ के लिए तड़प रही है, उस दरिंदे का क्या वो तो जेल में आराम से रोटियां तोड़ रहा है : दरिंदगी का शिकार हुई मासूम की मां
लकी जैन,(ARLive news)। “घर में डर और दर्द आज भी वैसे ही पसरा है, जैसा छह साल पहले था, टीवी पर टोंक में 6 साल की बच्ची से दरिंदगी और हैदराबाद की डॉक्टर के दुष्कर्म और निर्मम हत्या की खबर देखकर मां की आंखें नम हैं, पास में बैठी दूसरी बेटी घर के बाहर जाने से भी डरती है, बेटी कहीं से आने में दस मिनट भी लेट हो जाए तो मां-पिता का मन घबराने लगता है”, यह हालत राजसमंद के उस परिवार की है, जिसकी 8 साल की मासूम बेटी छह साल पहले 17 जनवरी 2013 को एक दरिंदे के वहशीपन का शिकार हुई थी और उसकी निर्मम हत्या कर दी थी।
उस मासूम की मां छह साल से दरिंदे की फांसी होने का इंतजार कर रही है। मासूम की मां से AR Live News रिपोर्टर ने बात की तो उसका दर्द आंसू बनकर बहने लगा और कहा मेरी बेटी की आत्मा इंसाफ के लिए छह साल से तड़प रही है और वह दरिंदा जेल में बैठकर आराम से रोटियां तोड़ रहा है।
मासूम की मां ने कहा मेरी बेटी के साथ हुई दरिंदगी और हत्या के 7 महीने बाद जब राजसमंद में सेशन कोर्ट ने उस दरिंदे मनोज प्रताप सिंह को फांसी की सजा सुनायी थी, तो लगा था कि मेरी बेटी का इंसाफ मिला है। लेकिन हमें क्या पता था कि इस देश में बेटियों के साथ न्याय और इंसाफ नहीं होता है।
मेरी बेटी को गए आज 6 साल 10 महीने 17 दिन बीत गए हैं। हम जानते हैं कि हमारा एक-एक दिन इंसाफ के इंतजार में कैसे गुजर रहा है। मैंने पुलिस अधिकारियों और कई लोगों से बात की कि उस दरिंदे को कब फांसी होगी। तो हमें बताया गया कि जोधपुर हाईकोर्ट से तो उसे फांसी ही मिली है, अब दिल्ली सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित है। पिछले तीन सालों से यही सुन रही हूं कि मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। अब किसी से पूछती हूं तो कोई जवाब भी नहीं मिलता है।
ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट खुद के लिए समय सीमा तय क्यों नहीं करता?
दर्द और लाचारगी से भरी आवाज में उस मां ने कहा… मैं सुप्रीम कोर्ट से पूछती हूं… कि क्या उसे ये मामले दिखायी नहीं दे रहे हैं..? क्यों सुप्रीम कोर्ट इतने संवेदनशील मामलों की प्राथमिकता से सुनवायी नहीं करता..? क्यों दरिंदों को समय पर फांसी नहीं दी जा रही है..? समय पर इंसाफ नहीं मिलने से कब तक दरिंदों के हौंसले बुलंद होते रहेंगे..? जब सभी मामलों में माननीय सुप्रीम कोर्ट संज्ञान लेता है, तो ऐसे मामलों की सुनवायी करने में उससे हो रही देरी पर संज्ञान क्यों नहीं ले रहा..? ऐसे मामलों की सुनवायी के लिए क्यों सुप्रीम कोर्ट खुद के लिए भी एक समय सीमा तय नहीं करता है..? छह साल में भी उस दरिंदे को फांसी नहीं हुई। मेरी बच्ची की आत्मा को तब तक शांति नहीं मिलेगी, वह तब तक तड़पेगी, जब तक उस दरिंदे को फांसी पर नहीं लटका दिया जाता।
छोटी निर्भया की मां ने कहा मेरी एक और छोटी बेटी है, यह घर के बाहर जाती है और इसे लौटने में दस मिनट भी देर हो जाए तो मन घबराने लगता है। जब भी किसी मासूम के साथ ऐसी कोई घटना के बारे में सुनती भी हूं तो आत्मा सिहर जाती है, अपने आप आंसू बहने लगते हैं, मुझे मेरी बेटी का चेहरा याद आ जाता है। हमारे देश की ये कैसी कानून व्यवस्था है, जहां आरोपी जेल में आराम से रोटियां तोड़ रहा है और पीड़ित परिवार व पीड़िताएं न्याय के लिए धक्के खा रहे हैं।
दुष्कर्म के बाद पत्थर से चेहरा कुचलकर कर दी थी हत्या
गौरतलब है कि 17 जनवरी 2013 को मनोज प्रताप सिंह ने 8 साल की मासूम को टॉफी के बहाने पास बुलाकर उसका न सिर्फ अपहरण कर दरिंदगी की थी, बल्कि पत्थर से उसका सिर और चेहरा कुचलकर निर्मम हत्या कर बहशीपन की सभी हदें पार कर दी थीं। इस मामले में कांकरोली थाना पुलिस ने त्वरित कार्यवाही कर एक महीने में चालान भी पेश कर दिया था। सेशन कोर्ट ने मामले की डेली सुनवायी की और 7 महीने बाद अक्टूबर 2013 में फैसला कर आरोपी मनोज प्रताप को फांसी की सजा सुनायी थी।
कानून के तहत पीड़ित परिवार का नाम, पता, पहचान गोपनीय रखी है