उदयपुर,(ARLive news)। इन दिनों शहर में राजनीतिक रौब रखने वालों के परिवार सदस्यों के अवैध कारोबार के खुलासे हो रहे हैं। कोई हथियारों के साथ पकड़ा जा रहा है, तो कोई चरस के साथ। कोई भू माफियाओं का साथी है तो कोई खुद सूदखोरी का धंधा कर रहा है। इन सभी में रोचक बात यह है कि ये सभी अलग-अलग मामले होते हुए भी एक ही राजनीतिक पार्टी के अलग-अलग पदाधिकारियों से संबंधित है।
जिस तरह के मामले सामने आए हैं, ये आपराधिक कारोबार एक दो दिन के नहीं, बल्कि पिछले सालों में पनपे हुए हैं। ऐसा लग रहा है कि मानो बीते सालों में पनपे अवैध कारोबारों का खुलासा राज्य में सरकार के बदलते ही हो रहा है। क्यों कि इससे पहले तो पुलिस भी इन काले धंधे के कारोबारियों पर हाथ डालने की ज्यादा हिम्मत नहीं कर पा रही थी।
गत महीने 18 मार्च को ही उदयपुर शहर के वार्ड 24 की भाजपा पार्षद के पति वकील किशन लाल साहू को प्रतापगढ़ पुलिस ने भूखंड धोखाधड़ी मामले में गिरफ्तार था। आरोप था कि किशन लाल साहू ने साथी वकील के साथ मिलकर नोटरी की फर्जी सीले तैयार कर खातूलाल के माध्यम से रामचंद्र मीणा की जमीन हड़प ली थी।
कोटड़ा सरपंच शारदा का भाई चेतन बम्बुड़िया तो पार्षद पति कई कदम आगे निकला। उसके कारनामों और आपराधिक गतिविधियों से परेशान जिला पुलिस ने फरवरी में ही उस पर 2 हजार रूपए का ईनाम घोषित किया था। शराब तस्करी सहित अन्य मामलों में वांछित चेतन दो दिन पहले अवैध पिस्टल, देशी कट्टे और सात जिंदा कारतूस के साथ गिरफ्तार हुआ है।
कोटड़ा सरपंच के इस भाई की चर्चा शहर में हो रही थी कि कि शहर के भाजपा पदाधिकारी मोतीलाल डांगी के पुत्र हर्षित के कारनामे सामने आ गए। हर्षित आधा किलो चरस के साथ पकड़ा गया और पुलिस को गच्चा देकर फरार भी हो गया। पुलिस अब हर्षित की तलाश में जुटी है। हर्षित के गिरफ्तार हुए दोस्त ने पुलिस को बताया है कि बरामद आधा किलो चरस कॉलेज छात्रों में सप्लाई होने के लिए लायी गई थी और यह कहां से लाए थे यह हर्षित ही बता सकता है।
इन सभी आपराधिक गतिविधियों के बीच शहर में राजनीति और पद की आड़ में कुछ नेता और पदाधिकारी सूदखोरी का कारोबार धड़ल्ले से चला रहे हैं। ब्याज इतना कि कर्जदार की कमर टूट जाती है कर्ज चुकाते-चुकाते। शहर में सूदखोरों से परेशान होकर आत्महत्या करने वालों के मामलों की तफ्तीश करते हुए पुलिस अगर शहर में सूदखोरों को चिह्नित करेगी तो कई नए नामों के खुलासे होंगे।
पुलिस ने जिन आपराधिक कारोबार के खुलासे किए हैं, वे दो दिन या दो महीनों में नहीं पनपे हैं, बल्कि गत वर्षों में जिले और शहर में इन्हें पनपने के लिए मुनासिब समय मिला। जानकारी के अनुसार अब तक इस तरह के आपराधिक कारोबार से जुड़े लोग अक्सर पुलिस से बच निकलने के लिए राजनीतिक रौब का सहारा लेते रहे हैं। पुलिस गाड़ी रोके इससे पहले तो इनके फोन तैयार होते हैं। नेता साब फोन पर होते हैं तो पुलिस कर्मी भी गाड़ी के दस्तावेज देखे बगैर ही राजनीतिक रौब दिखाने वाले को जाने देते हैं।
राजनीतिक रौब का अंदाजा तो इस बात से भी लगाया जा सकता है कि राज्य में अपनी पार्टी की सरकार नहीं होते हुए भी विपक्ष के विधायक जिला निर्वाचन अधिकारी (महिला कलेक्टर) के चैंबर में प्रत्याशी के नामांकन दाखिल करते समय अभद्र भाषा का उपयोग और ट्रांसफर की बात कर जाते हैं। वह भी सिर्फ इतनी सी बात पर कि महिला कलेक्टर ने नामांकन दाखिल करने आए प्रत्याशी और उसके साथ मौजूद विधायक को निर्वाचन आयोग के नियमों के तहत चैंबर में आने के लिए कहा था।
भाजपा पदाधिकारी के बेटे हर्षित के चरस के साथ पकड़े जाने और फिर फरार होने के मामले में वकीलों से हुई बातचीत के आधार पर यह कहा जा सकता है कि हर्षित का मौके से फरार होना केस को कमजोर कर सकता है। यहां यह जानना भी महत्वपूर्ण होगा कि पुलिस ने चरस की बरामदगी हर्षित के दोस्त दीपक के हाथ से की है। पुलिस ने बताया है कि कार में बैठे दीपक के हाथ से दो बैग बरामद हुए, जिसे खोलकर देखा तो उसमें चरस निकली। मतलब कार में बैठे हर्षित से चरस बरामद ही नहीं हुई और फिर हर्षित मौके से फरार भी हो गया। वकीलों का मानना है कि एनडीपीएस एक्ट के मामलों में यह आरोपी पक्ष के लिए बड़ी राहत और पुलिस की बड़ी चूक साबित हो सकती है। हालां कि पुलिस अनुसंधान में जुटाए साक्ष्यों से इस चूक की भरवायी कर सकती है। अनुसंधान अभी चल रहा है और अनुसंधान अधिकारी किन तथ्यों और साक्ष्यों के आधार पर हर्षित को इस केस में जोड़ते हैं, यह देखने वाली बात होगी।
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