स्वायत्त और संवैधानिक संस्था निर्वाचन आयोग पर इतनी अंगुलियां इससे पहले कभी नहीं उठी होंगी, जो पिछले कुछ समय से उठ रही हैं। बार-बार आयोग संदेह के घेरे में आ रहा है
राजस्थान-एमपी समेत पांच राज्यों के सामान्य चुनाव की घोषणा के वक्त को लेकर जो परिवर्तन किया गया वह किसी को भी समझ में आया होगा कि भाजपा की रेली में प्रधानमंत्री मोदी और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे लोक लुभावनी घोषणा कर सके, इसलिए 12.30 का समय टाल कर 3 बजे किया गया।
आयोग के मुखिया ओ.पी. रावत ने भले ही बचाव करते हुए कहा हो कि किसी के दबाव में आकर वक्त में परिवर्तन नहीं किया गया। लेकिन समय टालते ही राजे ने किसानो को मुफ्त बिजली समेत कई घोषणा कर डाली। एक रिपोर्ट में बताया गया की इस ढाई घंटे से लेकर उससे पाहे के चंद घंटो में 2000 लोक योजनाओं का फ़टाफ़ट भूमिपूजन कर दिया गया। आधी योजनाओ का लोकार्पण भी कर दिया गया।
चुनाव आयोग निष्पक्ष होता है और किसी के विशेष कर सत्ताधारी दल के दबाव में नहीं आता और आना भी नहीं चाहिए। लेकिन पिछले कुछ समय की घटनाये या आयोग के निर्णय देखे तो इसी आयोग ने आप पार्टी के 20 विधायको की सदस्यता बिना उन्हें सुने रद्द कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को फटकार लगाईं की विधायको को सुने।
आयोग ने गुजरात और हिमाचल के चुनाव में इस बार काफी अंतर रखा। उसकी भी आलोचना हुई। कर्णाटक के उपचुनाव की तारीख आयोग से पहले भाजपा के आईटी सेल द्वारा घोषित हुई। और अब सत्ताधारी दल को लोक लुभावनी घोषणा का वक्त देने के लिए अपने समय में परिवर्तन किया।
होना ये चाहिये था की पांच राज्यों के तारीख 12.30 बजे ही कर देनी चाहिए थी। जिसकी निष्ठा के प्रति सुई की नोक जितनी भी शंका-कुशंका नहीं होनी चाहिए, उस आयोग पर इतने सवाल और आरोप ? सरकार के इशारे पर आयोग चलेगा तो फिर चुनाव आयोग को स्वायत्त संस्था कैसे माना जाएगा…?
ईवीएम में गड़बड़ी के आरोप को लेकर आयोग पहले से ही शंका के दायरे में है। आयोग द्वारा दिए गये ईवीएम से दिल्ली के जेएनयु युनि. के चुनाव में कुल 9 प्रत्याशियों के 9 बटन के बजाय 10 वे बटन से वोट मिले….! आयोग ने यह कह कर पीछा छुडाया की ये इवीएम हमने सप्लाय नहीं किये थे….! इवीएम कोई बाजार में मिलनेवाली साधारण चीज नहीं ये आयोग भी भलीभांति जनता है। फिर भी उन्हों ने इनकार किया।