
उदयपुर,(एआर लाइव न्यूज)। नारायण सेवा संस्थान की ओर से बड़ी स्थित संस्थान परिसर में होने वाले दिव्यांग-निर्धन सामूहिक विवाह समारोह की तैयारियां जोरों पर चल रही हैं, पांडाल सज चुके हैं, अतिथियों को आना जारी है। दो दिन बाद विवाह बंधन में बंधने जा रहे जोड़े भी आ गए हैं। इनमें कुछ जोड़े तो ऐसे हैं, जिनका जीवन दूसरों के लिए मिसाल बन सकता है। जिन्होंने कभी हार नहीं मानी और अब एक ऐसा जीवनसाथी भी मिल गया जो एक-दूसरे का हाथ थाम कर अधूरे जीवन को पूरा करेंगे। narayan seva sansthan divyang vivah samaroh 2025
नीमच एमपी की 24 वर्षीय आरती कामलिया जन्मजात मूक बधिर हैं। न सुन सकती हैं और न बोल सकती हैं, उनकी सांकेतिक भाषा ही उनके मां की भावनाएं व्यक्त करती हैं। वर्तमान में 10वीं कक्षा में पढ़ाई कर रही आरती घर के सभी कामों में निपुण हैं। पिता को खोने के बाद वह अपनी मां कुसुम और भाई के साथ रहती हैं।
अब आरती का जीवन महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच रहा है। संस्थान द्वारा आयोजित दिव्यांग एवं निर्धन विवाह समारोह में उनका विवाह उदयपुर के सेक्टर-14 निवासी 27 वर्षीय गजेंद्र सिंह चौहान से होगा। उन्हें वैसा ही जीवनसाथी मिला जो उनकी भाषा और भावनाओं को समझ सकता है। गजेन्द्र भी जन्म से मूक बधिर हैं और सांकेतिक भाषा के माध्यम से ही संवाद करते हैं और दुकान पर कार्यरत हैं। ये जोड़ी इस बात की मिसाल बनेगी कि सच्चा रिश्ता भाषा या शब्दों का मोहताज नहीं होता, बल्कि समझ और विश्वास से पल्लवित होता है।
यूपी के मुरादाबाद में जन्मी निकिता और एमपी के सागर निवासी देवेन्द्र 31 अगस्त को हमसफर बनने जा रहे हैं। निकिता ने कहा उनके जीवन में खुशियां नारायण सेवा संस्थान में आने के बाद आयीं। निकिता जब 3 वर्ष की थी, तब किसी गंभीर बुखार से ग्रसित हुई और इस दौरान उनके दोनों पैर पोलियो की चपेट में आ गए। जीवन काफी चुनौतियों से गुजरा। उपचार के लिए नारायण सेवा संस्थान आयीं, उपचार के बाद नारायण सेवा संस्थान के सिलाई प्रशिक्षण केन्द्र में सिलाई सीखी और यहीं काम करने लगीं। निकिता की देवेन्द्र से मुलाकात भी संस्थान परिसर में ही हुई, जब एक पैर में पोलियो ग्रस्त देवेन्द्र उपचार के लिए संस्थान आए। यहां दोनों की मुलाकात हुई और बात हमसफर बनने के लिए बन गयी।
सात साल की उम्र में मधुमक्खी दंश से बीमार हुई आदिवासी बहुल फलासिया तहसील की कारेल ढाणी निवासी भूरादास दगाचा की पुत्री नीला कुमारी के पैर धीरे-धीरे घुटनों से तिरछे होते गए और समय बीतने के साथ ही वे कमजोर हो गए। चलते समय भी दोनों घुटने परस्पर रगड़ाते रहे। जिससे असहनीय दर्द होता। गरीबी के चलते इलाज भी संभव नहीं हो पाया। बावजूद इसके नीला ने हार नहीं मानी। जैसे-तैसे स्नातक तक शिक्षा प्राप्त की और मां माखानी देवी को घर के कामकाज में मदद करने लगीं।
नीला ने कभी सोचा नहीं था कि उनकी भी शादी होगी। लेकिन तब उनके जीवन में आमलिया गांव के नरेंद्र कुमार भगोरा आए। नरेन्द्र गृह निर्माण में मजदूरी करते-करते राजसमंद में फर्शी लगाने का काम करते हैं। नरेंद्र एक दिन काम से फलासिया गए, उन्होंने वहां नीला को देखा और उससे प्यार करने लगे। गांव आसपास होने से उन्होंने नीला के रिश्तेदार से फोन नंबर लिया और बातचीत शुरू की। बातचीत में जब नीला ने उन्हें दिव्यांगता के बारे में बताया, तो नरेंद्र ने सहज भाव से कहा, कोई बात नहीं। उनकी दोस्ती प्रेम में बदली और अब दोनों विवाह बंधन में बंधने जा रहे हैं।
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