
उदयपुर,(एआर लाइव न्यूज)। कैंसर के क्षेत्र में अत्याधुनिक तकनीक से उपचार, नवाचार, कैंसर के बढ़ते कारणों पर अंकुश लगाने के उपाय और कैंसर को लेकर हो रहीं रिसर्च को लेकर शनिवार को जीबीएच कैंसर हॉस्पिटल में दो दिवसीय “जीबीएच नेशनल ऑन्कोलॉजिस्ट कॉन्फ्रेंस 2024” शुरू हुई। अमेरिकन इंटरनेशन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (AIIMS) की ओर से हो रही इस कार्यशाला में देश के विभिन्न राज्यों के सौ से अधिक कैंसर स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स ने हिस्सा लिया। (gbh national oncology conference 2024 in gbh cancer hospital udaipur)
चिकित्सकों ने कहा इन दस वर्षों में भारत में कैंसर के उपचार को लेकर कई नयी तकनीकें आयी हैं, एडवांस टेक्नोलॉजीयुक्त मशीनों के जरिए कैंसर उपचार में टारगेट थैरेपी दी जा रही है। अब जरूरत है कि आमजनता में कैंसर को लेकर जागरूकता आए। चिकित्सकों ने कहा हमारे पास ज्यादातर मरीज कैंसर की एडवांस स्टेज में पहुंचते हैं, अगर कैंसर के शुरूआती स्टेज में ही मरीज हॉस्पिटल आ जाए तो मरीज को बचाने की उम्मीद 90 प्रतिशत से अधिक होती है। कॉन्फ्रेंस में चिकित्सकों ने देश के अलग-अलग हॉस्पिटल्स में आ रहे कैंसर पेशेंट, उनके ट्रीटमेंट और रिसर्च वर्क पर चर्चा की। इस दौरान उदयपुर के जीबीएच कैंसर हॉस्पिटल में कैंसर मरीज के इलाज में उपयोग हो रही टोमोथैरेपी पर भी चर्चा हुई। जीबीएच कैंसर हॉस्पिटल दक्षिणी राजस्थान का पहला हॉस्पिटल है, जहां राजस्थान और मध्यप्रदेश के बीच एकमात्र टोमोथैरेपी रेडिएशन मशीन मौजूद है।
कांफ्रेस की शुरूआत पद्मश्री से सम्मानित हो चुके सीनियर ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. पंकज शाह, सीनियर ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. नरेंद्र राठौड़, डॉ. संदीप जसूजा, AIIMS उदयपुर ग्रुप डायरेक्टर डॉ. आनंद झा, डायरेक्टर डॉ. प्रिया जैन, डॉ. सुरभि पोरवाल, वरिष्ठ कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. एसके कौशिक, डीन डॉ. विनय जोशी, वरिष्ठ सर्जन एवं ब्रेस्ट कैंसर स्पेशलिस्ट डॉ. गरिमा मेहता के दीप प्रज्ज्वलन से हुई। संचालन डॉ. प्रिया जैन एवं डॉ. मनन सरूपरिया ने किया।
गुजरात के सीनियर ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. चिराग देसाई ने बताया कि लोगों की लाइफ स्टाइल, खान-पान जिस तरह से बदला है, कैंसर किसी को भी हो सकता है। बीते वर्षों की तुलना में कैंसर स्क्रीनिंग संबंधित टेस्ट काफी सस्ते हुए हैं। आमजनता 40 वर्ष की उम्र के बाद रूटीन हेल्थ चेकअप में कैंसर स्क्रीनिंग संबंधित मेमोग्राफी, पीएसए टेस्ट कराना शुरू कर दें तो अगर किसी को कैंसर होने का अंदेशा भी होगा तो वह बहुत शुरूआती स्टेज में ही पता चल जाएगा। इससे उसका दवाइयों से ही इलाज संभव हो सकेगा, शुरूआत में ही दवाइयों से इलाज हो जाने से कीमो थैरेपी की जरूरत तक नहीं पड़ती है। ऐसे में जरूरी है कि लोग कैंसर को लेकर जागरूक होंगे तो इस पर जीत संभव है।
डॉ. चिराग ने कहा कि सबसे ज्यादा कैंसर मरीज मुंह के, गले के कैंसर से पीड़ित होते हैं। किडनी कैंसर के मरीज भी बढ़े हैं, तंबाकू, सिगरेट, शराब सेवन इसके मुख्य कारक हैं, हालं कि जिन क्षेत्रों में फ्लोराइड युक्त पानी के कारण किडनी में स्टोन की समस्या ज्यादा होती है और किसी मरीज के पथरी बार-बार होती है, उनमें किडनी कैंसर की आशंका तुलनात्मक बढ़ जाती है।
गुजरात के सीनियर ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. शिरीष अलुरकर ने बताया कि कैंसर के शुरूआती लक्षणों को पहचान कर भी इसका पता लगाया जा सकता है। किसी व्यक्ति का वजन अचानक कम होने लगना, हीमोग्लोबीन कम होना, अपच की समस्या, स्टूल के साथ रेगुलर ब्लड आना, मुंह-गले में नॉन हीलिंग अल्सर होना, बहुत ज्यादा बैक पेन या असहनीय दर्द कैंसर के शुरूआती लक्षण हो सकते हैं। ऐसे में हर किसी व्यक्ति को बार-बार यह समस्या हो रही है तो वह इसे सामान्य न ले और चिकित्सकीय सलाह के अनुसार कैंसर स्क्रीनिंग कराए। समय रहते कैंसर का पता चलने से कई बार कीमो थैरेपी की जरूरत भी नहीं पड़ती। कैंसर का दवाइयों के जरिए ही उपचार हो जाता है। हालां कि अब ऐसी भी दवाइयां आ चुकी हैं, जिससे कीमो थैरेपी के साइडिफेक्ट्स का कंट्रोल किया जा सके।
डॉ. शिरीष ने कहा रूटीन लाइफ में हर दिन 45 मिनट की एक्सरसाइज और वॉक करना और रात को 7 घंटे की नींद लेने से व्यक्ति एक स्वस्थ लाइफ जी सकता है, जो कि कैंसर के खतरे को कम करता है। डॉ. शिरीष ने कहा कैंसर को लेकर ऑनलाइन प्लेफॉर्म पर कई भ्रांतियां भी फैली हुई हैं, जैसे दूध या इसके प्रोडक्ट्स खाने-पीने या शुगर खाने से कैंसर होता है, तो ये सिर्फ भ्रांतियां हैं।
कैंसर ट्रीटमेंट में टारगेट थैरेपी स्पेशलिस्ट डॉ. मानसी शाह ने बताया कि महिलाओं में पहले सर्वाइकल कैंसर की दर ज्यादा थी, लेकिन अब महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर बहुत ज्यादा हो रहा है। अगर किसी के परिवार में कभी मां, मासी, बहन, दादी में से किसी को कैंसर रहा है तो वह 30 वर्ष की उम्र से ही रूटीन हेल्थचेकअप के साथ कैंसर स्क्रीनिंग टेस्ट भी करवाना शुरू कर दें। हम बदली हुई लाइफ स्टाइल या खान-पान को तो नहीं बदल सकते, लेकिन जागरूक रहकर कैंसर की पहचान और उपचार पर काम कर सकते हैं।
डॉ. मानसी ने कहा भारत में कैंसर ट्रीटमेंट के लिए हर वो दवा और तकनीक उपयोग हो रही है, जो पश्चिमी देशों में उपयोग होती हैं। हालां कि पश्चिमी देशों में क्लीनिकल ट्रायल के प्रति लोग जितना जागरूक हैं, भारत में नहीं है। यहां लोग क्लीनिकल ट्रायल में हिस्सा नहीं लेते हैं, इससे यहां कैंसर के उपचार पर होने वाले शोध के परिणामों को लेकर समस्या होती है। मुंबई के टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के डॉ. सलाखा जोशी ने ब्रेस्ट कैंसर की स्टेज पर चर्चा करते हुए बताया कि ऑपरेशन में इस तरह की महिलाओं के स्तन पूरी तरह हटाने की बजाय आंशिक भाग को हटाकर ऑको प्लास्टिक सर्जरी से आकार बिगड़ने से बचाए जाने पर विस्तृत चर्चा की।
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