इस बीमारी के अब तक दुनिया में सिर्फ दो सौ रोगी चिन्हित
उदयपुर,(एआर लाइव न्यूज)। दुर्लभ किमूरा डिजीज के पिछले एक साल में दो रोगी चिन्हित हुए है। इन दोनों रोगियों का इलाज बेडवास स्थित जीबीएच जनरल हॉस्पीटल के मेडिसिन विभाग में किया गया।
ग्रुप डायरेक्टर डॉ. आनंद झा ने बताया कि इससे पहले पिछले साल कपासन से महिला भी इलाज के लिए यहां पहुंची थी। करीब चार महीने तक चले इलाज के बाद महिला स्वस्थ हो गई थी। हाल ही बिहार के पटना से 13 वर्षीय बच्चे को लेकर परिजन जीबीएच जनरल हॉस्पीटल पहुंचे। इस बच्चे को किमूरा डिजीज का पता चलने पर परिजन ने सोशल नेटवर्क पर तलाश की, जिसमें यहां एक साल पहले उपचार करा चुकी महिला का पता चला। इस पर परिजनों ने जीबीएच जनरल हॉस्पीटल की हेल्प डेस्क पर संपर्क किया और बच्चे को इलाज के लिए यहां जीबीएच जनरल हॉस्पीटल लेकर पहुंचे।
यहां मेडिसिन विभाग की टीम ने डॉ. वीरेंद्र कुमार गोयल की देखरेख में बच्चे को पांच दिन के उपचार के बाद डिस्चार्ज कर दिया। अब अगले महीने इन्हें वापस बुलाया गया है।
इलाज का निर्धारित प्रोटोकॉल नहीं, लक्षण और जांचों के अनुसार उपचार की रूपरेखा बनाई
डॉ. वीरेंद्र गोयल के अनुसार किमूरा डिजीज में रोगी के चेहरे और गले पर गठान और सूजन हो जाती है, जो कैंसर की गठान की तरह प्रतीत होती है, जिसकी वजह से परिजनों और मरीज को कैंसर और उसके दुष्प्रभाव की चिंता होती है। गठान से द्रव्य अथवा टूकड़ा की बायोप्सी जांच के लिए भेजा गया, तब किमूरा रोग का पता चला। हालांकि इस रोग के अब तक दुनिया में करीब दो सौ से कम मरीज ही चिन्हित हुए है। इसलिए इसे आमतौर पर गंभीरता से नहीं लिया जाता है, लेकिन गठान की जांच के बाद इस रोग की पुष्टि होती है।
इस रोग के कारण पता नहीं होने से इलाज का प्रोटोकॉल भी निर्धारित नहीं है, लेकिन रोग के लक्षण और जांचों के बाद इसके उपचार की रूपरेखा बनाई गई, जिसमें काफी हद तक सफलता हासिल हुई। पिछले साल पहुंची महिला में चार माह बाद काफी हद तक सुधार हुआ। इन्हें शुरूआती 5 दिन भर्ती किया गया था तथा उसके बाद मासिक फोलोअप पर बुलाकर इलाज दिया गया। इसी तरह इस बच्चे का भी काफी हद तक सुधार हुआ है जिसे डिस्चार्ज कर दिया गया है।
अमेरिकन इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस के डीन डॉ. विनय जोशी का कहना है कि मेडिसिन और पैथोलॉजी विभाग के संयुक्त प्रयास से इस बीमारी का पता लगाया और अब इस बीमारी की रजिस्ट्री और अनुसंधान का प्रयास किया जाएगा। इस तरह का यह अनुठा और विचित्र अनुसंधान भारत में संभव होगा जिससे तत्काल रोगियों की जांच और उपचार किया जा सकेगा।
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