नई दिल्ली (एआर लाइव न्यूज)। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सभी महिलाओं को सुरक्षित और कानूनी गर्भपात का अधिकार दिया। कोर्ट ने कहा कि अविवाहित महिलाएं भी आपसी सहमति से 20-24 सप्ताह की अवधि में गर्भपात कराने की हकदार हैं। साथ ही कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि विवाहित, अविवाहित महिलाओं के बीच का अंतर असंवैधानिक है। न्यायमूर्ति डी. वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना की एक पीठ ने 25 साल की अविवाहित युवती की याचिका पर फैसला सुनाया।
विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच भेदभाव असंवैधानिक
कोर्ट ने कहा कि एक महिला की वैवाहिक स्थिति उसे गर्भपात के अधिकार से वंचित करने का आधार नहीं हो सकती है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट 2021 का संशोधन विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच भेदभाव नहीं करता है। इस तरह का पक्षपात करना प्राकृतिक व संवैधानिक रूप से सही नहीं है, और यह उस रूढ़िवादी सोच को कायम करता है। प्रेगनेंसी बनी रहे या फिर गर्भपात कराया जाए यह महिला के अपने शरीर पर अधिकार से जुड़ा मामला है। अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अविवाहित महिलाएं भी 24 सप्ताह के भीतर अवांछित गर्भावस्था को समाप्त करने की हकदार होंगी।
सहमति से गर्भवती होने पर 20 हफ्ते तक हो सकता है गर्भपात
एमटीपी एक्ट के प्रावधानओं की व्याख्या करते हुए कोर्ट ने कहा कि सिर्फ बलात्कार पीड़ित, नाबालिग या फिर उन महिलाओं जो मानसिक रूप से बीमार हो, को 24 हफ्ते तक अबॉर्शन की इजाजत है। विवाहित महिलाएं भी यौन उत्पीड़न और बलात्कार पीड़ितों की श्रेणी में आ सकती हैं, यदि वह गैर-सहमति या जबरन गर्भवती होती हैं। कानून के मुताबिक सहमति से बने संबंध से ठहरे गर्भ को सिर्फ 20 हफ्ते तक गिराया जा सकता है।
ये था मामला
सुप्रीम कोर्ट ने 25 साल की अविवाहित युवती की याचिका पर यह फैसला सुनाया। याचिकाकर्ता युवती सहमति सेक्स से गर्भवती हुई थी और उसने बाद में दिल्ली हाईकोर्ट से 24 हफ्ते के गर्भ को गिराने की इजाजत मांगी थी, जिसे हाईकोर्ट ने नामंजूर कर दिया था। युवती ने इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली एम्स के मेडिकल बोर्ड के अधीन गर्भपात कराने की इजाजत दी थी।



