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रण भूमि की माटी का हल्दिया रंग बेरंग हो गया..

Lucky Jain by Lucky Jain
January 21, 2022
mining mafia damages haldighati


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वरिष्ठ पत्रकार संजय गौतम की रिपोर्ट

उदयपुर,(एआर लाइव न्यूज)। हमारे मेवाड़ के स्वाभिमान के लिए अपनी सुख सुविधाएं ही नहीं जान भी कुर्बान कर देने वाले वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि पर क्रांतिवीरों ने फेसबुक, वाट्स एप पर श्रद्धांजलि की बौछारें कर डाली हैं। मगर भेड़ चाल चलने वाले इन सपूतों को ऐतिहासिक रणभूमि हल्दीघाटी की दुर्दशा से कोई सरोकार नहीं, जहां प्रताप ने मुग़ल सम्राट अकबर को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था।

विश्व विख्यात पर्यटन स्थल झीलों की नगरी उदयपुर से महज 35 किलोमीटर दूर स्थित हल्दीघाटी आज अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही है। इस ऐतहासिक रण भूमि के चारों तरफ माइनिंग का जाल बिछ चुका है। रेवेन्यू की भूखी सरकारों ने इस वीर भूमि का संरक्षण करने के बजाए खदानों की लीजें जारी कर दी।

अब युद्ध नहीं, खनन की खाईयां मिलेंगी

खनन माफियाओं ने हल्दीघाटी मैदान को तहस नहस कर सैंकड़ों फिट गहरी खाईयां खोद डाली। आलम यह है कि इस रण भूमि की माटी का रंग बेरंग हो गया है। हल्दिया रंग की माटी पर सोप स्टोन, सिंगल सुपर फास्फेट जैसे खनिजों की परतें चढ़ गई है।

ब्रिटिश लेखक जेएस अर्रमोर ने अपने नॉवेल दी हेरोइक स्टैंड एट हल्दीघाटी में लिखा था कि युद्ध के कई सालों बाद भी वीर भूमि उफान पर है। आसपास के ग्रामीणों को रण में गूंजने वाली दौड़ते घोड़ों की टापो की ध्वनि, तलवारों की खनक, मारो काटो की पुकार व घोड़ों की हिनहिनाहट सुनाई देती है। मगर इन किवदंतियों पर अब विराम लग गया है। विकास के रथ ने इतिहास की विरासत को चकनाचूर कर दिया है। अब हल्दीघाटी के चहुंओर स्थित खदानों में ब्लास्टिंग कि कानफोडू आवाजें, मशीनों की गड़गड़ाहट, डंपरों व ट्रकों की आवाजें सुनाई देती हैं।

गौरव बढ़ाने वाले स्थलों को नो-कंसट्रक्शन एरिया घोषित करना चाहिए

सरकारी अनदेखी का शिकार हल्दीघाटी ही नहीं, अमृतसर स्थित जलिया वाला बाग़, बक्सर व प्लासी का मैदान भी है। देश में रियासतों के विलय के बाद दिल्ली और जयपुर की सरकारों की जिम्मेदारी थी कि इतिहास का गौरव बढ़ाने वाले स्थलों को नो-कंसट्रक्शन एरिया घोषित करना चाहिए था।

हल्दीघाटी रणभूमि क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा गोगुंदा क्षेत्र स्थित मायरा की गुफा भी अस्तित्वहीन हो चुकी है। जर्जर हो गई यह गुफा चारों तरफ से जंगली वृक्षों से घिरी हुई है। मुगलों से हुए युद्ध काल में प्रताप मायरे वाली गुफा का इस्तेमाल अपने हथियार छुपाने के लिए करते थे।

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