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उदयपुर में पहली बार दिखा दुर्लभ प्रजाति का पहाड़ी बबूल : पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. सतीश शर्मा ने खोजा

arln-admin by arln-admin
May 24, 2020
in Home, Rajasthan, Udaipur
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Dr Sateesh Sharma Saw Pahadi Babool In Udaipur First Time


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उदयपुर,(ARLive news)। जैव विविधता से भरे-पूरे मेवाड़ में पहली बार दुर्लभ प्रजाति के पहाड़ी बबूल (अकेशिया एबरनिया) की उपस्थिति देखी गई है। अरावली की बबूल प्रजातियों की विविधता पर कार्य कर रहे देश के ख्यातनाम पर्यावरण वैज्ञानिक व सेवानिवृत्त सहायक वन संरक्षक डॉ. सतीश शर्मा ने ने इसे उदयपुर की पहाड़ियों में खोजा है।

डॉ. सतीश शर्मा ने बताया कि उदयपुर शहर से मात्र 15 किलोमीटर की दूरी पर धार गांव में सड़क किनारे इस पहाड़ी बबूल (अकेशिया एबरनिया) के पांच पेड़ों को देखकर पहचान की है। उन्होंने अपने क्षेत्रीय भ्रमण व सर्वे के दौरान 3 मध्यम आकार के तथा दो छोटी अवस्था के इन पेड़ों को देखा और इसकी फिनोलॉजी पर अध्ययन के बाद यह तथ्य उजागर किया है।

1951 के बाद राजस्थान में अज्ञात 

डॉ. शर्मा ने बताया कि राजस्थान में इस प्रजाति को सबसे पहले 1951 में वनस्पतिविद् के.एस.सांखला ने उत्तर-पश्चिमी राजस्थान के सर्वे दौरान उपस्थिति दर्ज की और उसके बाद यह पेड़ राजस्थान में अज्ञात सा बना रहा। वनस्पति वैज्ञानिक डॉ. एम.एस. भण्डारी ने भी वर्ष 1978 में लिखी अपनी पुस्तक ‘फ्लोरा ऑफ इंडियन डेज़र्ट’ में भी इसे दर्ज नहीं किया। इन स्थितियों के बीच वर्तमान में यह पौधा फलों से लदा हुआ है। ऐसे में उदयपुर में पुष्पित और फलित हो रहे इस पेड़ की उपस्थिति सुकूनदायी प्रतीत हो रही है।

पीली छाल से होती है पहचान

डॉ. शर्मा बताते है कि यह प्रजाति एक बड़ी झाड़ी या छोटे वृक्ष के रूप में पाई जाती है। पीले रंग की छाल से यह दूर से ही पहचान में आ जाती है। काटी गई टहनियों के ठूंठ की छाल कुछ समय बाद काली हो जाती है। इसके फूल सुंदर चटक पीले रंग के होते हैं, जिन्हें देखना सुकूनदायी होता है। इसके फल सर्दियों में आते हैं। जब पौधा पुष्पकाल में होता है तो बरबस ही दूर से नज़र आ जाता है, क्योंकि पूरा वृक्ष फूलों से लद जाता है तथा बहुत सुंदर दिखाई देता है। इसके अधिकांश गुण देसी बबूल से मिलते हैं लेकिन तने का रंग और फलियों की बनावट एकदम अलग होने से इसे सहजता से पहचाना जा सकता है।

68 वर्षों बाद दिखी उपस्थिति

डॉ. शर्मा ने बताया कि भारतीय सर्वेक्षण विभाग के प्रकाशित रिकार्ड के अनुसार गत 68 वर्षों में इस पौधे की दूसरी उपस्थिति दर्ज है वहीं उदयपुर जिले में इसकी प्रथम उपस्थिति है।
इधर, उदयपुर में इसकी उपस्थिति पर क्षेत्र के पर्यावरणप्रेमियों के साथ वागड़ नेचर क्लब के सदस्यों ने डॉ. शर्मा को बधाई दी है और इसे क्षेत्र के पारिस्थिति तंत्र के लिए सुखद संकेत बताया है।

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