छत्तीसगढ़/जगदलपुर,(ARLive news)। उच्च शिक्षा के बाद मल्टीनेशनल कंपनियों में नौकरी और वैभवपूर्ण जिंदगी जीने की लालसा को लेकर महानगरों की ओर भागने वाले युवाओं के लिए बस्तर के छोटे से गांव सरगीगुड़ा के यशवंत मिसाल बने हुए हैं। छत्तीसगढ़ के पहले वुड क्राफ्ट डिजाइनिंग इंजीनियर इस युवा ने बेंगलुरु में लाखों रुपए के पैकेज की नौकरी को त्याग कर गांव के युवाओं को काबिल बनाने का रास्ता चुना।
वक्त के साथ जब उनकी कला की परख बढ़ी तो उन्होंने घर में ही काष्ठ शिल्प का लघु उद्योग स्थापित कर दिया। आज यहां सौ से अधिक आदिवासी शिल्पकारों को रोजगार दे रहे हैं। कभी राह के पत्थरों- सी वजूद रखने वाले गांव के आदिवासी युवाओं को आज उन्होंने ‘कोहिनूर” बना दिया है।
जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर बस्तर ब्लॉक के सरगीगुड़ा गांव की पहचान आज विदेशों तक है। 28 वर्षीय यशवंत कश्यप की मेहनत और समर्पण का ही नतीजा है कि उनके शिष्यों के काष्ठ शिल्प की मांग जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन आदि कई देशों में है। उनके पिता रामनाथ भी छत्त्तीसगढ़ के ख्यातिलब्ध काष्ठ शिल्पकार हैं।
यशवंत के शिष्यों में शामिल श्रीराम, लैखूराम, मनबोध और रैनू ने बताया कि बस्तर में शिल्पकार तो हैं, पर शिल्प की बारीकियां सिखाने वाले नहीं। यशवंत शिल्प की बारीकियां, डिजाइन सिखाने के साथ ही बाजार भी उपलब्ध कराते हैं। इन युवा शिल्पकारों ने बताया कि यशवंत की बदौलत ही आज उनके शिल्प की मांग सात समंदर पार तक है। इससे उनकी पहचान तो बनी ही।
प्रारंभिक शिक्षा यशवंत ने गांव के स्कूल में पूरी की। हायर सेकंडरी की पढ़ाई बस्तर से पूरी करने के बाद यहीं की आईटीआई में दाखिला ले लिया। इसके बाद उनका चयन इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ क्राफ्ट एंड डिजाइन सेंटर जयपुर राजस्थान के लिए हो गया। वहां उन्होंने डिग्री हासिल की और बेंगलुरु चले गए। वहां डिजाइनिंग के क्षेत्र में काम करने वाली कई नामी-गिरामी कंपनियों ने उन्हें लाखों रुपये के पैकेज पर नौकरी की पेशकश की, लेकिन उन्हें अपनी मिट्टी ही भाई और गांव लौट आए।
यशवंत कहते हैं कि वहां रहकर रुपया तो खूब कमा सकते थे, लेकिन वह खुशी कभी नहीं मिलती, जो आज गांव के युवाओं को उनके पैरों पर खड़े करने पर मिल रही है। उन्होंने बताया कि प्रशिक्षण केंद्र में बनने वाली कलाकृतियां वे जीआई टैग के साथ बेंगलुरु की क्राफ्ट निर्यात से जुड़ी उन कंपनियों को बेचते हैं, जो देश के साथ ही पूरी दुनिया में शिल्प का निर्यात करती हैं।
यशवंत अब काष्ठ के साथ-साथ बेलमेटल और लौह शिल्प की बारीकियां भी युवाओं को सिखा रहे हैं। काष्ठ शिल्पकला केंद्र के रूप में दो साल पहले उन्होंने घर में लघु कुटीर उद्योग शुरू किया था, जो वक्त के साथ मध्यम उद्योग का रूप लेता जा रहा है। इससे युवाओं के लिए रोजगार भी बढ़ता जा रहा है। खास बात यह कि यशवंत बिना किसी शुल्क के यह प्रशिक्षण देते हैं।
सोर्स: जीएनएस न्यज एजेंसी
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