
उदयपुर,(ARLive news)। मुंबई से इलाज की उम्मीद में आए एक मरीज को उदयपुर के एमबी हॉस्पिटल के डॉक्टर्स की बेरूखी और अमानवीय व्यवहार ने मौत के घाट पहुंचा दिया। दर्द से कराहता मरीज वार्ड तक पहुंच गया तो उसे इलाज देने के बजाए भिखारी कहकर धक्के मारकर वार्ड से बाहर निकाल दिया गया। मरीज अस्पताल के गेट पर दर्द में कराहता रहा, लेकिन किसी का दिल नहीं पसीजा। आखिरकार उस मरीज की हिम्मत भी टूट गई और कई दिनों से जीने की चाहत में मौत से लड़ रहे मरीज ने दम तोड़ दिया।
जाते-जाते उसने अपना दर्द जब कुछ मीडिया रिपोर्टर्स को बताया तो सुनने वालों की रूह कांप गयी। बार-बार यही विचार मन में आया कि कोई डॉक्टर इतना क्रूर कैसे हो सकता है…? हर संभव प्रयास कर मरीज की जिंदगी को बचाने की शपथ लेने वाले डॉक्टर कैसे अपने डॉक्टरी और मानवीय फर्ज को भी भूल सकता हैं।
यह कहानी है मुंबई निवासी वासुदेव गणपत जोशी की। वासुदेव ने दर्द से कराहते हुए एमबी हॉस्पिटल में दम तोड़ दिया है। वासुदेव की मृत्यु से पहले उसने मीडिया रिपोर्टर को अपनी पूरी कहानी बताई थी। उसने बताया था कि मुंबई में 1992 में हुए दंगों में उसका पूरा परिवार खत्म हो गया था। परिवार में वह एक अकेला शख्स बचा था, तब उसकी उम्र करीब 18 वर्ष थी। उसने टेलर का काम सीखा और टेलरिंग कर जीवन यापन करने लगा। करीब एक महीने पहले उसके पैर में चोट लग गयी। मामूली चोट समझ कर उसने कुछ दिन ध्यान नहीं दिया। चोट के कारण उसके पैर की जब दो अंगुलियां पूरी तरह काली पड़ गयीं तो वह मुंबई के एक निजी अस्पताल में पहुंचा। वहां उपचार करवाया, लेकिन कोई राहत नहीं मिली। दो अंगुलियों से इंफेक्शन फैलता हुआ पूरे पैर तक फैल चुका था और उसका घुटने से नीचे तक का पैर पैर काला पड़ गया था।
आर्थिक रूप से कमजोर होने से वह वहां ज्यादा उपचार नहीं करा सका, किसी से पता चला कि उदयपुर के नारायण सेवा संस्थान में निशुल्क उपचार हो जाएगा। वासुदेव मुश्किल उदयपुर पहुंचा और नारायण सेवा संस्थान में दिखाया। वहां चिकित्सकों ने जांच के बाद उसे बताया कि उसका उपचार यहां संभव नहीं है, सरकारी अस्पताल में दिखा दो। इस पर किसी परिचित के साथ वासुदेव एमबी हॉस्पिटल आ गया। डॉक्टर्स ने उसे दो दिन वार्ड में भर्ती रखा, इस दौरान उसका परिचित उसे छोड़ कर चला गया। दो दिन के बाद डॉक्टर्स ने भी उसका उपचार करना बंद कर दिया। पहले कहा कि ऑपरेशन कर पैर काट देंगे, लेकिन बाद में जब कोई परिजन साथ नहीं दिखा तो भिखारी कहकर व बेइज्जत कर उसे वार्ड से बाहर निकाल दिया।
वासुदेव एमबी हॉस्पिटल के अहाते में ही इतनी गर्मी में जमीन पर पड़ा-पड़ा तड़पता रहा, लेकिन किसी डॉक्टर का दिल उसे देखकर नहीं पसीजा। गुरूवार रात कुछ मीडियाकर्मी उस तक पहुंचे तो उसने अपनी पूरी कहानी बयां की। मीडियाकर्मियों के दबाव में डॉक्टर्स ने उसे दोबारा अस्पताल के वार्ड में भर्ती तो कर लिया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पैर का संक्रमण पूरे शरीर में फैल चुका था और कई दिनों से भूखा वासुदेव मौत से लड़ते-लड़ते थक गया था, इसलिए वार्ड में भर्ती होने के बाद ही उसने दम तोड़ दिया। अगर वासुदेव को समय रहते उपचार मिल जाता तो शायद वह जिंदा होता। डॉक्टर्स के अमानवीय व्यवहार के कारण आज वासुदेव एक लावारिस लाश में तब्दील हो गया है और उसका शव मोरचरी में अंतिम संस्कार का इंतजार कर रहा है।
बार-बार एक ही सवाल जहन में उठता है कि आखिर क्यों…? क्यों मानवता के इस मंदिर में बेसहारा मरीज के साथ ऐसा अमानवीय व्यवहार हुआ…?
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