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कोर्ट में वकील सुशील ने बताया कि उन्होंने तुलसी का कोई केस कभी नहीं लड़ा। तुलसी उनके मुंशी देवेन्द्र का मित्र था और उसी के जरिए वह उससे मिले थे। पेशी पर तुलसी को उज्जैन लाए थे, तब उसने बंद लिफाफे दिए थे और कहा था कि जेल में विरोधी गुट से झगड़ा चल रहा है और अधिकारी सुन नहीं रहे हैं। इसलिए यह लिफाफे भेजने हैं। तुलसी पढ़ा-लिखा नहीं था। उसके कहने पर मैंने उदयपुर कलेक्टर सहित अन्य कार्यालय का पता उसके बंद लिफाफों पर लिखे थे और जूनियर ने लिफाफे पोस्ट करवा दिए थे। लिफाफों में रखी एप्लीकेशन में क्या लिखा था, इस बारे में जानकारी नहीं थी। सीबीआई ने उसे होस्टाइल घोषित कर दिया। sohrabuddin tulsi encounter case trial
इसके विपरीत वकील के मुंशी देवेन्द्र ने कोर्ट को बताया कि 2006 में एनएसए के तहत उज्जैन जेल में बंद रहा था। वहां सोहराबुद्दीन, तुलसी से मित्रता हुई थी। जेल से बाहर आने के बाद मुंशी का काम करने लगा और वकील सुशील कुमार का मुंशी बन गया। तुलसी पेशी पर जब उज्जैन लाया गया तब उसने बताया था कि उसे उदयपुर जेल में परेशान कर रहे हैं और शिकायत करनी है। इस पर मैंने ही वकील सुशील कुमार से उसे मिलवाया था। उन्होंने खुद पूरी शिकायत टाइप करवाई थी और उसे हमने खुद डाकघर जाकर पोस्ट किया था।
कोर्ट में तत्कालीन डबोक एसएचओ और वर्तमान डीएसपी पर्वत सिंह के बयान भी होने थे। सीबीआई ने इन बयानों को ड्रॉप करते हुए कोर्ट में एप्लीकेशन लगाई कि अभी पर्बत सिहं के बयानों की जरूरत नहीं है। पुलिसकर्मी फतह सिंह के बयान भी होने थे, लेकिन बीमारी के चलते वह काेर्ट में उपस्थित नहीं हो सके। sohrabuddin tulsi encounter case trial in cbi special court mumbai advocate and munshi statement
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