
मुंबई. सोहराबुद्दीन-तुलसी एनकाउंटर केस में शुक्रवार को मुंबई की सीबीआई स्पेशल कोर्ट में हुए तत्कालीन सूरजपोल एसएचओ डीएसपी हिम्मत सिंह के बयानों ने सीबीआई की सच्चाई से पर्दा उठा दिया। हिम्मत सिंह ने कोर्ट को बताया कि सीबीआई के तत्कालीन डीआईजी कंडा स्वामी ने मुझे गिरफ्तार करने की धमकी दी और कहा कि बचना चाहते हो तो वह बयान दो जो हम बता रहे हैं। सीबीआई अधिकारियों ने दबाव और डर के बीच मुझसे कोर्ट में गलत बयान दिलवाए, जबकि वैसा कभी कुछ हुआ ही नहीं था। हिम्मत सिंह के इन बयानों ने एक बार फिर सीबीआई की जांच में बरती गई निष्पक्षता और सच्चाई से पर्दा उठा दिया है। हिम्मत सिंह के बयानों को लेकर कोर्ट परिसर में चर्चा रही। Sohrabuddin encounter case DSP Himmat singh statement revealed truth of CBI investigation
कोर्ट में हिम्मत सिंह ने बताया कि वह जुलाई 2006 में सूरजपोल थानाधिकारी लगा था। उसके थानाक्षेत्र में सेंट्रल जेल आती थी, तो थाने में पदभार संभालने के बाद वह सिर्फ एक बार जेल के अधिकारियों से औपचारिक मुलाकात के लिए गया था। इसके बाद वह कभी सेंट्रल जेल नहीं गया। सीबीआई की ओर से सरकारी वकील बीपी राजू के पूछने पर हिम्मत सिंह ने कोर्ट को बताया कि वह कभी भी निरीक्षक अब्दुल रहमान या किसी भी अन्य पुलिस अधिकारी और कर्मचारी को जेल में किसी भी कैदी से मिलवाने सेंट्रल जेल लेकर नहीं गया था। सीबीआई ने उससे यह बयान गलत दिलवाए थे।
मोबाइल इंटरसेप्शन को लेकर जब सरकारी वकील ने प्रश्न किया तो हिम्मत सिंह ने कहा कि रुटीन प्रक्रिया के तहत ही एसपी ऑफिस की गोपनीय शाखा से उसके पास कॉल आया था कि वे एक मोबाइल को इंटरसेप्शन पर डाल रहे हैं और उस मोबाइल के कॉल मेरे मोबाइल पर ट्रांसफर होंगे। मोबाइल किसका था और कहां से ऑपरेट हो रहा था, मुझे इसकी जानकारी गाेपनीय शाखा से नहीं दी गई थी और न ही मुझे इसकी जानकारी है। मोबाइल पर आए कॉल में कुछ सट्टे की बातें हुई थी, कोई खास सूचना नहीं मिलने पर दो-तीन दिन बाद इंटरसेप्शन बंद हो गया।
सोहराबुद्दीन-तुलसी एनकाउंटर की जांच को लेकर सीबीआई ने तीन-चार बार मुझे पूछताछ के लिए मुंबई बुलाया था, लेकिन बयान नहीं लिए थे। सीबीआई के तत्कालीन डीआईजी कंडा स्वामी और अन्य अधिकारियों ने मुझे एक दिन डिटेन कर गिरफ्तार करने की धमकी दी थी और कहा था कि गिरफ्तारी से बचना है तो उनके बताए अनुसार बयान कोर्ट में दे देना। 25 अगस्त 2011 को कोर्ट में बयान हुए। कोर्ट में भी जब बयान देने गया तो पर्दे के पीछे सीबीआई ऑफीसर खड़ा था, जो बयान में कही गई सभी बातें सुन रहा था। ऐसे में सीबीआई ने प्रेशर और डर में मुझसे कोर्ट में वह बयान दिलवाए थे, जो हकीकत में कभी हुआ ही नहीं था।
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