कोर्ट में गुजरात आईपीएस आईएम देसाई ने बयान दिए कि दिसंबर 2006 में वे सांबरकांठा जिले के एसपी थे, यह वही जिला है, जिसके तहत आने वाले श्यामला जी से तुलसी 26 दिसंबर 2006 को फरार हुआ था। आईएम देसाई ने बताया कि तुलसी के मेरे जिला क्षेत्र में राजस्थान पुलिस कस्टडी से भागने की सूचना न तो आईपीएस दिनेश एमएन ने मुझे दी थी और न ही किसी और ने मुझे इसकी सूचना दी थी।
देसाई ने कोर्ट को बताया कि 2007 के बाद तुलसी एनकाउन्टर की जांच जब सीआईडी में चल रही थी, तब वे पदोन्नत होकर सीआईडी में डीआईजी थे। देसाई ने आगे कोर्ट को बताया कि तुलसी एनकाउंटर के पूरे मामले की जांच उनके सुपरविजन में हुई थी। इसका चालान भी उच्च अधिकारियों से चर्चा कर मैंने ही करवाया था और एनकाउंटर से संबंधित गुजरात और राजस्थान पुलिस टीम के अधिकारी और अधीनस्थ पुलिसकर्मियों की गिरफ्तारी के आदेश दिए थे।
मोबाइल नंबर के इंटरसेप्शन के लिए दिनेश एमएन का कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ था
2006 में गुजरात एटीएस के मोबाइल इंटरसेप्शन सेक्शन में इंस्पेक्टर लगे शशि भूषण शाह के बयान भी हुए। शशि भूषण ने कोर्ट को बताया कि वह जब 2006 में एटीएस के इंटरसेप्शन सेक्शन में लगे थे, तब राजकुमार पंड्यन एसपी थे। इंटरसेप्शन सेक्शन की मॉनीटरिंग राजकुमार पंड्यन ही करते थे। हमें विभिन्न टास्क दिए जाते थे। राजस्थान आईपीएस दिनेश एमएन का हमें मोबाइल इंटरसेप्शन से संबंधित कभी कोई फैक्स प्राप्त नहीं हुआ और न ही मैं ऐसे किसी नंबर के बारे में जानता हूं, जो तुलसी के फरार होते समय मौके से मिला हो और हमने उसे इंटरसेप्शन पर रखा हो।
तीसरे गवाह इंटरसेप्शन सेक्शन में ही लगे दूसरे इंस्पेक्टर पराग व्यास के बयान ड्रॉप कर दिए गए। सीबीआई ने तर्क दिया कि पराग व्यास शशि भूषण शाह के साथ ही काम करते थे। शशि भूषण के बयानों में सारी बात आ चुकी है, ऐसे में इनके बयानों की जरूरत नहीं है।