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Home Expert Articles

मंहगाई दर 12.94 प्रतिशत हुई, मंहगाई की मारः नाक में दम

arln-admin by arln-admin
June 16, 2021
in Expert Articles, Home, National
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public suffer to high inflation in india


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डॉ. वेदप्रताप वैदिक :

यह संतोष का विषय है कि देश में आई कोरोना की दूसरी लहर अब लौटती हुई दिखाई पड़ रही है। लोग आशावान हो रहे हैं कि हताहतों की संख्या कम होती जा रही है और अपने बंद काम-धंधों को लोग फिर शुरु कर रहे हैं। लेकिन मंहगाई की मार ने आम जनता की नाक में दम कर दिया है। ताजा सरकारी आंकड़ों के मुताबिक थोक मंहगाई दर 12.94 प्रतिशत हो गई है।

सरल भाषा में कहें तो यों कहेगे कि जो चीज़ 1000 रु. में मिलती थी, वह अब 1129 रु. में मिलेगी। ऐसा नहीं है कि हर चीज के दाम इतने बढ़े हैं। किसी के कम और किसी के ज्यादा बढ़ते हैं। जैसे सब्जियों के दाम यदि 10 प्रतिशत बढ़ेते है, तो पेट्रोल के दाम 35 प्रतिशत बढ़ गए। याने कुल मिलाकर सभी चीजों के औसत दाम बढ़ गए हैं।

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि मंहगाई की यह छलांग पिछले 30 साल की सबसे ऊँची छलांग है। यहां तकलीफ की बात यह नहीं है कि मंहगाई बढ़ गई है, बल्कि यह है कि लोगों की आमदनी घट गई है। जिस अनुपात में मंहगाई बढ़ती है, यदि उसी अनुपात में आमदनी भी बढ़ती है तो उस मंहगाई को बर्दाश्त कर लिया जाता है, लेकिन आज स्थिति क्या है ?

आमजनता न्यूनतम जरुरतें भी पूरी नहीं कर पा रही और सरकार का विदेशी-मुद्रा भंडार लबालब

करोड़ों लोग बेरोजगार होकर अपने घरों में बैठे हैं। ज्यादातर प्राइवेट कंपनियों ने अपने कर्मचारियों का वेतन आधा कर दिया है। कई दुकानें और कारखाने बंद हो गए हैं। छोटे-मोटे अखबार भी बंद हो गए हैं। कई बड़े अखबारों को पिछले साल भर में इतने कम विज्ञापन मिले हैं कि उनकी पृष्ठ संख्या घट गई, पत्रकारों का वेतन आधा हो गया और लेखकों का पारिश्रमिक बंद हो गया। राष्ट्र का कोई काम-धंधा ऐसा नहीं है, जिसकी रफ्तार धीमी नहीं हुई है, लेकिन सरकार की जेबें फूल रही हैं।

सरकार का विदेशी-मुद्रा भंडार लबालब है, जीएसटी और टैक्स बरस रहा है, उसके नेताओं और कर्मचारियों को किसी प्रकार की कोई कठिनाई नहीं है। लेकिन आम आदमी अपनी रोजमर्रा की न्यूनतम जरुरतें भी पूरी नहीं कर पा रहे हैं।

कोरोना की महामारी के दौरान शहरों के मध्यमवर्गीय परिवार तो बिल्कुल लुट-पिट चुके हैं। अस्पतालों ने उनका दीवाला पीट दिया है। यह ठीक है कि भारत सरकार ने गरीबी-रेखा के नीचे वाले 80 करोड़ लोगों के लिए मुफ्त खाद्यान्न की व्यवस्था कर रखी है। लेकिन आदमी को जिंदा रहने के लिए खाद्यान्न के अलावा भी कई चीजों की जरुरत होती है। पेट्रोल और डीजल के दाम सुरसा के बदन की तरह बढ़ गए हैं। उनके कारण हर चीज मंहगी हो गई है। गांवों में शहरों के मुकाबले मंहगाई की मार ज्यादा सख्त है। मंहगाई पर काबू होगा, तो लोगों की खपत बढ़ेगी। खपत बढ़ेगी तो उत्पादन ज्यादा होगा, अर्थ-व्यवस्था अपने आप पटरी पर आ जाएगी।

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