देश में 213 टेस्ट लैब की मदद से एक दिन में 16000 टेस्ट को सरकार उपलब्धि बता रही है, लेकिन क्या यह वाकैय उपलब्धि है…?
हर राज्य में कोरोना संक्रमण की जांच के लिए 5 से 6 लैब भी नहीं..!
बिना संसाधनों के घर-घर सर्वे को दिया जा रहा स्क्रीनिंग का नाम..!
विभिन्न राज्यों में सरकारों द्वारा चिह्नित हॉट-स्पॉट को भी लें तो कम से कम 1 करोड़ जनता को अभी टेस्टिंग की जरूरत..!
लकी जैन,(ARLive news) । कोरोना महामारी ने दुनिया के सभी ताकतवर देशों को अपनी जद में ले लिया है। हिंदुस्तान भी कोरोना बम पर बैठा हुआ है। हर दिन यह डर और अंदेशा रहता है कि कहीं आज यह बम फट न जाए, देश में मुंबई, जयपुर, इंदौर जैसे कुछ शहरों में कोरोना संक्रमण इस तेजी से फैल रहा है कि सरकारों के भी हाथ-पांव फूल गए हैं, लेकिन फिर भी हम टेस्टिंग में अब भी बहुत पीछे हैं।
11 अप्रेल तक देश में 7600 लोगों में कोरोना संक्रमण की पुष्टि हो चुकी है, 249 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और यह आंकड़ा 30 गुना की तेजी के साथ दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है, संक्रमण के शरूआती दिन 9 मार्च से 15 मार्च के बीच संक्रमितों की संख्या 114 थी, वहीं इससे पांचवे सप्ताह 5 से 10 अप्रेल के बीच संक्रमितों की संख्या 30 गुना की रफ्तार से बढ़कर 3289 हो गयी। देश के विभिन्न राज्यों में सरकारों द्वारा चिह्नित हॉट-स्पॉट को भी लें तो कम से कम 1 करोड़ जनता को अभी टेस्टिंग की जरूरत हैं।
लेकिन फिर भी देश में जांचें कछुआ चाल की रफ्तार से हो रही हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय से 10 अप्रेल को जारी आंकड़ों के अनुसार देश में कोरोना की जांच करने के लिए पब्लिक सेक्टर की 146 और प्राइवेट सेक्टर की मात्र 67 लैब ही अधिकृत हैं। वहीं देश में 28 राज्य और 9 केन्द्र शासित प्रदेश, मतलब 130 करोड़ की जनता के लिए एक राज्य में कोरोना संक्रमण की जांच के लिए 5 से 6 लैब भी नहीं हैं।
जबकि सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिए हैं कि सरकार निजी लैब को कोरोना की जांच के लिए अधिकृत करे और जनता के लिए यह जांचे निशुल्क हों, निजी लैब को भुगतान सरकार करेगी। लेकिन कोरोना जांच में ज्यादा से ज्यादा निजी लैब अपना सहयोग दे सकें, इस संबंध में केन्द्र सरकार ने अभी तक न तो कोई निर्देश जारी किए और न ही अधिसूचना। सवाल है कि आखिर क्यों केन्द्र सरकार निजी लैबों को कोरोना टेस्टिंग के अधिकार नहीं दे रही है..? आखिर सरकार अब किस बात का इंतजार कर रही है..?
स्वास्थ्य मंत्रालय से जारी आंकड़ों के अनुसार ही पिछले सप्ताह तक पूरे देश के 28 राज्यों और 9 केद्र शासित प्रदेशों की 130 करोड़ की जनता पर हर दिन मात्र 5 से 6 हजार टेस्ट ही हो पा रहे थे। सरकार ने दावा है कि उसने टेस्ट की संख्या बढ़ाई है। देश में 213 टेस्ट लैब की मदद से सरकार 9 अप्रेल तक एक दिन में 16000 टेस्ट करने की स्थिति पर पहुंची। सरकार इसे उपलब्धि की तरह प्रस्तुत कर रही है, लेकिन क्या यह वाकैय उपलब्धि है..? क्या यह 16000 टेस्ट की रफ्तार काफी है कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए..?
देश में जरूरत के अनुसार टेस्टिंग नहीं होने का खामियाजा जनता ही भुगत रही है। राजस्थान, गुजरात सहित देश के अन्य राज्यों में ऐसे मामले सामने आए हैं कि कोरोना संक्रमण से व्यक्ति की मौत हो गयी, लेकिन उसके कोरोना संक्रमित होने की रिपोर्ट मौत के बाद आयी, तब तक बहुत देर हो गयी और उस व्यक्ति से उसके परिवार के सदस्यों में भी संक्रमण फैल गया।
अगर केन्द्र और राज्य सरकारें कोरोना महामारी के प्रकोप को समझ कर पहले दिन से ही घर-घर सर्वे में सैंपल लेकर टेस्ट की संख्या अधिक से अधिक रखती तो शायद संक्रमितों की संख्या इतनी नहीं होती, जो अभी हो गयी है और होती जा रही है। समस्या यह है कि सरकारें अभी भी नहीं समझ रही है, टेस्टिंग की संख्या में अभी भी तेजी से बढ़ोतरी करने पर विचार नहीं कर रही हैं। क्यों कि अगर ऐसा होता, तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सरकार निजी लैब को टेस्टिंग का अधिकार दे चुकी होती।
सरकारों ने देश में 143 लाख शरणार्थियों को क्वेरंटाइन किया हुआ है, यह वे शरणार्थी हैं जो लॉकडाउन के बाद अचानक सड़कों पर पैदल चलकर पलायन कर अपने-अपने गांव लौटते दिखायी दिए थे। हालां कि पलायन करने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है, लेकिन सरकार से जारी इन आंकड़ों को भी माना जाए तो ये 14 लाख लोग संक्रमण के अंदेशे के हाई रिस्क पर हैं, सरकार तो इनकी जांच ही नहीं करवा सकी।
देश में अभी घर-घर सर्वे को स्क्रीनिंग का नाम दिया जा रहा है, वह और भी खतरनाक है। सिस्टम के सबसे रूट लेवल पर काम करने वाली आशा सहयोगिनी अपने-अपने क्षेत्र में घर-घर सर्वे करने जा रही है। उनके पास उस समय सिर्फ एक रजिस्टर होता है। वे नाम, पता पूछती है, घर में किसी को खांसी, जुकाम, बुखार तो नहीं पूछतीं हैं और बस इसका रजिस्टर में इंद्राज कर स्क्रीनिंग मान ली जाती है। न तो उनके पास थर्मो स्कैन या अन्य कोई उपकरण होता है, न ही कोई ट्रेनिंग और न ही उनके साथ कोई मेडिकल टीम होती है।
इस नाममात्र के घर-घर सर्वे को ही स्क्रीनिंग मान कर राज्य अपनी-अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। विभिन्न राज्यों में विदेश से लौटे लोगों तक की जांच नहीं हुई है, जबकि उनमें संक्रमण का अंदेशा सबसे ज्यादा है। उन्हें भी सिर्फ होम क्वेरंटाइन रहने को बोल दिया गया है, लेकिन कोई जांच नहीं हुई। अगर विदेश से लौटे हर व्यक्ति की कोरोना जांच होती तो जयपुर के रामगंज में संक्रमण की यह स्थिति नहीं होती। जयपुर के रामगंज में कोरोना विस्फोट जैसी स्थिति इसलिए बनी है, क्यों कि संक्रमण ओमान से लौटे एक व्यक्ति के कारण फैला है, जिसकी प्रशासन ने कोई जांच करने के बजाए सिर्फ होम क्वेरंटाइन होने के लिए कहा था। उसने होम क्वेरंटाइन की पालना की नहीं और संक्रमण फैलता गया। जब तक पता चला तब तक काफी देर हो चुकी थी।
राजस्थान देश में सर्वाधिक जांच व स्क्रीनिंग करने वाले राज्यों में शामिल है। लेकिन ऐसे अनेक लोग हैं, जिनकी जांच नहीं हो सकी है, जबकि वे ट्रेवल हिस्ट्री और लक्षणों के लिहाज से संवेदनशील कहे जा सकते हैं। घर-घर सर्वे के जरिए राजस्थान चिकित्सा विभाग 6 करोड़ लोगों की स्क्रीनिंग का दावा कर रहा है, जबकि अभी भी ऐसे हजारों घर बचे हैं, जहां सर्वे के लिए तक कोई नहीं पहुंचा।
टेस्टिंग करवानी इसलिए भी जरूरी है कि जब तक किसी व्यक्ति में संक्रमण का पता नहीं चलेगा, तो वह सबके संपर्क में रहेगा और संक्रमण को फैलाता रहेगा।