नोटिस से ग्रामीणों को तात्कालिक राहत तो मिल सकती है, लेकिन क्या यह स्थायी समाधान है….?
उदयपुर,(ARLive news)। जमीनें बंजर हो चुकी हैं, जल स्त्रोतों सहित जमीन के अंदर का पानी कैमिकल युक्त हो चुका है, पानी को उपयोग करने वाले ग्रामीणों को चर्म रोगों सहित कई घातक बीमारियां हो रही है। पीने का पानी तक नहीं है, यह सब सुनने में बहुत डरावना लग रहा होगा, लेकिन यह उदयपुर के एक क्षेत्र की हकीकत है। नारकीय जीवन जीने को मजबूर करने वाली यह कहानी शहर से 40 किलोमीटर दूर जावरमांइस के कानपुर सहित आस-पास के गांवों की है। यहां हिंदुस्तान जिंक की फैक्ट्रियों से निकलने वाले कैमिकल के कारण सबकुछ कैमिकल युक्त हो चुका है और अब अपने ही पुश्तैनी गांवों में इनग्रामीणों का रहना दिन-ब-दिन मुश्किल होता जा रहा है।
पिछले लंबे समय से अपनी इस हालत से जूझ रहे और समस्याओं के समाधान की मांग कर रहे ग्रामीणों को जब किसी से मदद नहीं मिली तो इन्होंने अब मतदान बहिष्कार का निर्णय लिया। उनके इस निर्णय ने प्रशासन को हिला दिया। 1200 मतदाताओं के मतदान बहिष्कार के निर्णय से उदासीन प्रशासन में थोड़ी हरकत तो आयी, लेकिन समस्याओं का समाधान कितना हो पाएगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है। क्यों कि लंबे समय से ग्रामीणों के जीवन अधिकार जल को दूषित कर खत्म कर रहे वेदांता ग्रुप के हिंदुस्तान जिंक की उन फैक्ट्रियों को प्रशासन ने नोटिस जारी कर कागजी कार्यवाही तो की है, लेकिन यह कागजी कार्यवाही कब तक जमीन पर पहुंचेगी यह कहा नहीं जा सकता है। हालां कि प्रदूषण नियंत्रण मंडल अधिकारियों का कहना है कि हमारे नोटिस पर वेदांता ग्रुप के प्रबंधन ने अप्रेल के अंत तक सभी व्यवस्थाएं दुरूस्त करने का भरोसा दिलाया है।
यहां जानने की बात यह है कि 29 अप्रेल को मतदान होने के बाद इन ग्रामीणों की कौन सुनेगा….? क्यों कि मतदान का बहिष्कार का निर्णय करने से पहले जिला प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण मंडल न तो इन ग्रामीणों की तकलीफ देख रहा था, न ही सुन रहा था।
कलेक्टर आनंदी ने बताया कि फैक्ट्रियों से निकल रहे कैमिकल के कारण ग्रामीणों के जनजीवन प्रभावित होने की शिकायत मिली थी। प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण मंडल की टीम ने जांच की। शिकायत सही पाई जाने पर फैक्ट्रियों को नोटिस जारी किए गए हैं और समस्याओं के समाधान के लिए कहा गया है। इसके अलावा पब्लिक न्यूसेंस एक्ट की धारा 133 के तहत केस दर्ज किया गया है।
सवाल : ग्रामीणों को सिर्फ पानी टैंकर सप्लाई से क्या जल स्त्रोत ठीक हो जाएंगे
प्रदूषण नियंत्रण मंडल के क्षेत्रीय अधिकारी बीआर पंवार ने बताया कि ग्रामीणों की शिकायत पर हमारी टीम मौके पर गयी थी। पाया गया कि हिंदुस्तान जिंक के टेलिंग डैम में लीकेज था। इससे जलस्त्रोत दुष्प्रभावित हो रहे थे। फैक्ट्रियों से निकल रहे कैमिकल के रिसाव से जल प्रदूषित हो गया है। टीम ने मौके पर सैंपल लिए और रिपोर्ट जयपुर मुख्यालय और प्रशासन को सौंपी है। वेदांता ग्रुप को नोटिस जारी किया है। जिस पर उन्होंने अप्रेल के अंत तक गांव में पीने के पानी के टैंकर सप्लाई करने, लीकेज को ठीक करने सहित अन्य समस्याओं के समाधान का भरोसा दिलाया है।
प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण मंडल से सवाल यह है कि क्या सिर्फ पानी के टैंकर सप्लाई से गांव के जल स्त्रोत का पानी कैमिकल-मुक्त हो जाएगा….? क्या खराब हुई जमीनें ठीक हो जाएंगी….? टैंकर का पानी ग्रामीण पीने में उपयोग ले सकते हैं, लेकिन दैनिक कार्यों में उनको कैमिकल युक्त पानी ही उपयोग करना पड़ेगा तो उससे होने वाली बीमारियों के लिए कौन जिम्मेदार होगा….? मतदान दिवस के बाद क्या इन आर्थिक रूप से कमजोर हुए ग्रामीणों की सुनवाई होगी….? या फिर इन्हें पांच साल नारकीय जीवन जीना होगा और फिर मतदान बहिष्कार करने पर मजबूर होना पड़ेगा।
कैमिकल रिसाव के कारण जल स्त्रोतों का खराब होना, जमीनों का बंजर होना, बच्चों को चर्मरोग होना यह सबकुछ एक दिन या एक महीने में तो हुआ नहीं होगा, तो क्यों अब तक प्रशासन की नजर इन ग्रामीणों पर नहीं पड़ी….? क्यों यह रिसाव प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने पहले नहीं पकड़े….? क्या सिर्फ इसलिए कि ये फैक्ट्रियां देश की बड़ी कंपनियों में शुमार वेदांता ग्रुप की है.…? या फिर इसलिए कि यहां पीड़ित कोई रसूकदार नेता, अधिकारी न होकर आर्थिकरूप से कमजोर ग्रामीण हैं….।
प्रशासन से सवाल तो होंगे ही…. कागजी कार्यवाही से इन सवालों के जवाब शायद मिल भी जाएं, लेकिन ग्रामीणों को इन समस्याओं का स्थायी समाधान मिलेगा या नहीं, इसका जवाब कौन देगा….?