नई दिल्ली,(ARLive news)। कांग्रेस लगातार नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का विरोध कर रही है। पार्टी ने इसे असंवैधानिक और धर्म के आधार पर बांटने वाला बताया है। हालांकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि राज्यों का सीएए लागू करने से मना करना असंवैधानिक है। उनका यह बयान उनकी पार्टी के स्टैंड के खिलाफ है। इसी कारण रविवार को उन्होंने अपने पिछले बयान पर सफाई देते हुए कहा है कि यदि उच्चतम न्यायालय इसे संवैधानिक करार देती है तो इसका विरोध करना मुश्किल हो जाएगा। मगर हमारी लड़ाई जारी रहेगी।
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने अपने बयान पर सफाई देते हुए ट्विटर पर लिखा, ‘मेरा मानना है कि सीएए असंवैधानिक है। हर राज्य विधानसभा के पास यह संवैधानिक हक है कि वह प्रस्ताव पारित कर सकती है और इसे वापस लेने की मांग कर सकती है। यदि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कानून को संवैधानिक घोषित कर दिया जाता है तो उसका विरोध करना मुश्किल हो जाता है। लड़ाई जारी रहेगी।
अदालत तय करेगी संवैधानिकता
कपिल सिब्बल के बयान का एक तरह से समर्थन करते हुए पार्टी नेता सलमान खुर्शीद ने कहा, यदि उच्चतम न्यायालय हस्तक्षेप नहीं करती है तो यह कानून की पुस्तक में रहेगी। यदि कुछ कानून की पुस्तक में रहता है तो आपको कानून का पालन करना होगा वरना इसके गंभीर परिणाम होंगे। जहां तक इस कानून का संबंध है यह ऐसा मामला है जहां राज्य सरकारों के बीच केंद्र के साथ गहरा मतभेद है। इसलिए हम सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का इंतजार करेंगे। अंततः अदालत तय करेगा और तब तक सब कुछ कहा/ किया/ नहीं किया गया है वह अल्पकालीन और अस्थायी है।
जयराम रमेश ने भी सिब्बल के बयान से मिलती-जुलती टिप्पणी की।
उन्होंने कहा, मैं उतना निश्चित नहीं हूं कि जो राज्य सरकारें ये कह रही है कि वे ये कानून लागू नहीं करेंगे उनका अदालत में कितना पक्ष सुना जाएगा, मुझे पता है कि केरल सरकार ने एक प्रस्ताव पास किया है, लेकिन ये एक राजनीतिक प्रस्ताव है। ये न्यायिक प्रक्रिया का कितना सामना कर पाएगा इस बारे में मैं 100 फीसदी सुनिश्चित नहीं हूं।’
राज्यों के पास नहीं है केंद्र के कानून को लागू न करने का अधिकार
केरल साहित्य उत्सव के दौरान सिब्बल ने कहा, ‘जब सीएए पारित हो चुका है तो कोई भी राज्य यह नहीं कह सकता कि मैं उसे लागू नहीं करूंगा। यह संभव नहीं है और असंवैधानिक है। आप उसका विरोध कर सकते हैं। विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर सकते हैं। केंद्र सरकार से कानून वापस लेने की मांग कर सकते हैं। मगर संवैधानिक रूप से यह नहीं कह सकते कि राज्य इसे लागू नहीं करेंगे। ऐसा करने से ज्यादा समस्याएं पैदा होंगी।