स्मार्ट सिटी में बिना कमीशन नहीं होता कोई बिल पास..?
उसे हर काम में चाहिए थी मनमाफिक रिश्वत, नहीं दो तो ठेकेदार को धमकाता था..!
उदयपुर,(ARLive news)। कहावत है कि आटे में नमक तो स्वीकार है, लेकिन नमक में आटा मिलाकर नमक की रोटी नहीं बनती। ऐसे ही हालात उदयपुर स्मार्ट सिटी के फाइनेंशियल एडवाइजर आबिद खान के थे। बताया जा रहा है कि 2 लाख रूपए रिश्वत लेते धरे गए फाइनेंशियल एडवाइजर आबिद खान को हर काम में मनकाफिक घूस चाहिए होती थी। ठेकेदार नहीं दे तो उसे इस हद तक परेशान किया जाता था, कि वह आखिरकार सरेंडर कर दे।
ठेकेदार अगर यह बोले कि उसका ठेके के काम में जो मार्जिन निकल रहा है, वह उस पर कमीशन देने को तैयार है, तो फाइनेंशियल एडवाइजर आबिद खान कहता था कि जब बिल पूरे का पास करूंगा तो कमीशन भी पूरी राशि पर ही लुंगा।
एसीबी में फाइनेंशियल एडवाइजर आबिद खान की शिकायत करने वाले परिवादी प्रवीण से तो टेंडर होने के दिन से ही आबिद खान ने रिश्वत मांगनी शुरू कर दी थी। जब परिवादी ने टेंडर होने के नाम से मांगी गयी रिश्वत के 7 लाख रूपए नहीं दिए, तो उसे परेशान करना शुरू कर दिया था। एक साल तक प्रताड़ित होने के बाद परिवादी ने आबिद खान के सामने सरेंडर तो नहीं किया, हालां कि उसने एसीबी की ओर रूख करने की हिम्मत की और इस पूरे भ्रष्टाचार का खुलासा किया।
जितने का टेंडर हुआ, उतनी गाड़ियों का काम भी नहीं दिया
परिवादी ने बताया कि उसका स्मार्ट सिटी में एक साल पहले सुबह घर-घर कचरा इकट्ठा करने वाली कचरे की गाड़ियों में ड्राइवर, हेल्पर लगाने और मेंटीनेंस का ठेका हुआ था। दो साल का ठेका करीब साढे़ तीन करोड़ का था, जिसमें 132 गाड़ियां की व्यवस्था मुझे मिलनी थी।
लेकिन टेंडर होने के बाद मुझसे टेंडर होने के नाम से ही 7 लाख रूपए रिश्वत मांगी गयी। जब मैंने 7 लाख रूपए नहीं दिए, तो मेरी गाड़ियां कम कर दीं। टेंडर की शर्तों का उल्लंघन कर मुझे शुरूआत में 132 के बजाए 118 गाड़ियां ही दी गयी। फाइनेंशियल एडवाइजर ने 12 गाड़ियों का परमिट किसी अन्य को दे दिया। इसके बाद भी जब मैंने रिश्वत नहीं दी तो मौखिक रूप से मेरी करीब 20 गाड़ियों और कम कर दी और अन्य किसी को दे दीं।
आबिद खान लगातार घूस देने का दबाव बना रहा था। उसने इस दौरान मुझे टेंडर निरस्त करने की धमकी दी। मेरा टेंडर चलने के दौरान ही, एक नया टेंडर निकाला, उसमें सिंगल कंपनी ने हिस्सा लिया और उसकी को टेंडर दिला दिया। मैंने ऑब्जेक्शन किया तो कह दिया तुम भी 4-5 महीने काम कर लो।
बिल पास नहीं होने से करीब 75 लाख रूपए अटक रहे थे
हर महीने स्टाफ को सैलरी, मेंटीनेंस सब मिलाकर करीब 20-25 लाख रूपए बिल बनता है। जब यह बिल फाइनेंशियल एडवाइजर के पास गया तो उसने बिल रोक दिया और पास नहीं किया। ये बिल पास नहीं होने से इस माह की ईएसआई सहित अन्य प्रक्रिया नहीं हुई, इससे मई और जून के बिल भी अटक गए थे। इस तरह मेरे 70 से 75 लाख रूपए अटक रहे थे। परिवादी ने कहा मेरा इन बिल पर इतना मार्जिन भी नहीं निकल रहा था, जितनी ये रिश्वत मांग रहे थे। जब हर तरह से परेशान हो गया, तो फिर एसीबी का रास्ता ही दिखायी दिया।