मुम्बई,(ARlive news)। सोहराबुद्दीन-तुलसी एनकाउंटर केस पर सोमवार से मुम्बई सीबीआई स्पेशल कोर्ट में अंतिम बहस शुरू हुई। पब्लिक प्रोसीक्यूटर बीपी राजू नेे कोर्ट में सीबीआई की ओर से दलील पेश कर सोहराबुद्दीन के एनकाउंटर के बाद दर्ज हुए एफआईआर का जिक्र करते हुए कहा कि सोहराबुद्दीन आईएसआई का एजेंट नहीं था और न ही वह आईएसआई के कहने पर लतीफ गैंग के सहयोग से गुजरात के किसी बड़े नेता को मारने आया था।
इस दलील के पक्ष में लोक अभियोजक बीपी राजू ने बताया कि उदयपुर की डीएसबी शाखा के एसआई ने भी यह बयान दिए हैं कि हमारे पास सोहराबुद्दीन के आईएसआई एजेंट होने की सूचना नहीं थी। हालां कि कोर्ट में जज के पूछने पर लोक अभियोजक बीपी राजू ने यह भी स्वीकार किया कि यह सही है कि सीबीआई ने इस बात पर कोई अनुसंधान नहीं किया कि सोहराबुद्दीन वाकैय आईएसआई एजेंट था या नहीं।
कोर्ट में चल रही अंतिम बहस में बीपी राजू ने दलील दी कि सोहराबुद्दीन से मिली सूरत से अहमदाबाद की टिकट भी उसके पास प्लांट की गई थी, क्यों कि एफएसएल साइंटिस्ट निकुंज के बयान में यह स्पष्ट हुआ था कि टिकट पर कहीं भी खून नहीं लगा था। लोक अभियोजक ने सीआईडी इंस्पेक्टर वीएल सोलंकी की प्रारंभिक जांच का हवाला देते हुए कहा कि सोलंकी ने फार्महाउस से संबंधित कई बयान लिए थे और यह स्थापित किया था कि एनकाउंटर फर्जी था।
लोक अभियोजक बीपी राजू ने सोहराबुद्दीन-कौसरबी के साथ किडनैप हुआ तीसरा आदमी तुलसी था, यह तथ्य पेश कर डॉ प्रकाश के बयानों का हवाला दिया तो कोर्ट में हुई चर्चा में बचाव पक्ष के वकीलोे ने कहा कि सोहराबु्द्दीन के भाई नयाबुद्दीन ने भी यह कहा था कि उसने इंदौर से हैदराबाद के लिए सिर्फ सोहराबुद्दीन और कौसरबी को रवाना किया था और हैदराबाद के एमजे ट्रेवल्स के मालिक के बयान में भी यह आया है कि सलमान के नाम से सिर्फ दो लोगों की बस टिकट बुक हुई थी। सीबीआई ने तीसरा आदमी तुलसी को बताकर यह केस खराब किया है। गुजरात से आए वरिष्ठ अधिवक्ता एसपी राजू ने सुप्रीम कोर्ट व उत्तराखंड हाईकोर्ट की रूलिंग पेश करते हुए अदालत से निवेदन किया कि गलत अनुसंधान का फायदा आरोपी को मिलना चाहिए।
वहीं तुलसी प्रजापति केस में सीबीआई ने आशीष पांड्या की दी एफआईआर का जिक्र करते हुए दलील दी कि तुलसी कस्टडी में था तो उसके पास हथियार कहां से आया, सीबीआई के अनुसार तुलसी वापस आते समय ट्रेन में नहीं था, जिससे पुलिस ने उसे फरार बताया था। लेकिन सीबीआई इस बात को स्पष्ट नहीं कर पाई कि अहमदाबाद से उसे कौन ले गया था, उसे कहां रखा गया था और किसने रखा था। सीबीआई इस बात को भी स्पष्ट नहीं कर पाई कि अगर सोहराबु्द्दीन-कौसरबी के साथ तीसरा आदमी तुलसी था तो उसे एक साल तक जिंदा क्यों रखा गया। लोक अभियोजक बीपी राजू ने यह कहते हुए अंतिम बहस पूरी की कि तुलसी का एनकाउंटर भी फर्जी किया हुआ था।
जवाब में आरोपी पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एसपी राज ने यह कहते हुए आरोपी एनएच डाबी की दलील पेश की और सुप्रीम कोर्ट की दलील पेश की कि किसी भी क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में दो चीजें बहुत जरूरी होती हैं, पहली यह प्रिजम्शन किया जाए कि आरोपी बेकसूर है और दूसरा फेयर ट्रायल हो। इसी के साथ उन्होंने यह भी कहा कि केस का फैंसला मोरलटी पर नहीं बल्कि साक्ष्यों पर होना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि बर्डन ऑफ प्रूफ प्रोसीक्यूषन पर होता है, न कि आरोपी पर और अगर किसी मामले में दो राय या संशय होता है तो उसका फायदा आरोपी को मिलता है।
अपराध के बारे में बचाव करते हुए वकील एसपी राजू ने कहा कि ने बताया कि प्रकरण में जब्त हथियार एनएच डाबी को ईशू था, इस बात का कोई रिकॉर्ड नहीं है और न ही हथियार डाबी से जब्त हुआ है। गौरतलब है कि सीबीआई ने चार्जशीट में दावा किया था कि सोहराबुद्दीन के शरीर से मिली एक मात्र गोली उस रिवॉल्वर से चली थी, जो एनएच डाबी को अलॉट थी।
वकील एसपी राजू ने ही सीबीआई चार्जशीट में आरोपी बनाए गए सोहराबुद्दीन केस के पहले आईओ एटीएस डीएसपी एमएल परमार के बचाव में दलील रखी। उन्होंने कोर्ट में कहा कि मेरे मुवक्किल ने सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस की तफ्तीश की थी और जो जांच में पाया उसकी समरी रिपोर्ट कोर्ट में पेश की थी और जिसे कोर्ट ने मंजूर किया था। सीबीआई ने चार्जशीट में यह कहीं नहीं दर्शाया कि एमएल परमार की तफ्तीश या समरी रिपोर्ट एनकाउंटर के षडयंत्र का हिस्सा थी और न ही उस समरी रिपोर्ट को मंजूर करने वाले जज को आरोपी बनाया।
आरोपी बालकृष्ण चौबे की ओर से वकील राजेन्द्र शुक्ला प्रस्तुत हुए और उन्होंने कोर्ट में बताया कि बालकृष्ण चौबे के नाम एफआईआर में है, जो कि विवादित दस्तावेज है, क्यों कि अब्दुल रहमान इस बात से इनकार कर चुके हैं कि यह एफआईआर उन्होंने दी थी। अब जब एफआईआर ही उन्होंने नहीं दी तो इसके तथ्य कैसे सही हो सकते हैं। इसके अलावा वे दो गवाह जिनके आधार पर सीबीआई मेरे मुवक्किल के मौके पर होने की पुष्टि करती है, वे दोनों गवाह नाथूबा जडेजा और भाईलाल राठौड़ होस्टाइल हो चुके हैं।
वकील शुक्ला ने कहा सीबीआई ने मेरे मुवक्किल चौबे को फार्महाउस पर बताया, लेकिन उससे संबंधित गवाह नहीं है, वहीं सीबीआई ने चार्जशीट में बताया कि कौसरबी को मारकर इलोल ले जाकर जलाया गया था, सीबीआई ने चार्जशीट में जो घटनाक्रम और समय बताया है, उस दौरान मेरे मुवक्किल चौबे लॉगबुक के अनुसार राजकोट ड्यूटी पर थे। ऐसे में मेरे मुवक्किल का इस केस से कोई संबंध नहीं है।
मंगलवार को अन्य आरोपियों की ओर से केस पर अंतिम बहस जारी रहेगी।